Saturday, September 11, 2010

रज्जब तैं गज्जब किया

संत रज्जब को भजनानन्दी संत कहा गया है। उन्होंने परमात्मा के चिंतन का मूलाधार भजन स्वीकार किया था। रज्जब का जन्म जयपुर के निकट सांगानेर में हुआ था। वह जब युवा हुए तो पिता ने आमेर में उनका विवाह तय किया। उन दिनों संत दादू दयाल का आश्रम आमेर में था। रज्जब की बारात संत दादू के आश्रम के पास से गुजरी। अचानक उनका घोड़ा आश्रम के सामने रुक गया। रज्जब घोड़े से उतर कर संत दादू दयाल का आशीर्वाद लेने गये। रज्जब ने ज्यों ही दादू दयाल के चरणों की धूलि मस्तक पर लगाई तो उन्हें लगा कि जैसे संत दादू से उनका जन्म-जन्म का संबंध है। तभी दादू दयाल ने कहा—
रज्जब तैं गज्जब किया, सिर पर बांधा मौर।
आया था हरिभजन कूं, करै नरक की ठौर॥
यह सुनकर रज्जब का मन पलट गया और उन्होंने शादी करने से मना कर दिया। दादू दयाल ने बहुत समझाया कि गृहस्थ बनकर भजन करो। लेकिन रज्जब नहीं माने। वह संत दादू दयाल के आश्रम में ही रहने लगे। दादू ने उन्हें दीक्षा दी। फिर तो रज्जब उनके प्रमुख शिष्यों में से एक बन गए। वह दूल्हा-वेष में रहने लगे—क्योंकि उनको इसी वेष में गुरु ने स्वीकार किया था।
संत रज्जब ने कहा कि जिसके हृदय में हरि का निवास नहीं है, वह तो सूने घर के समान है। परमात्मा तो अपना रस देने के लिए, आनन्द बाँटने के लिए सदा उत्सुक रहते हैं। वह आनन्द रस देते नहीं थकते और उनका दास-प्रेमी भी उसे लेते नहीं थकता। परमात्मा तो रसरसिया हैं, वह युगों-युगों से हमारी प्यास पूरी करते आ रहे हैं-
साईं देता ना थकै, लेता थकै न दास।
रज्जब रसरसिया अमित, जुग-जुग पूरे प्यास॥
रज्जब को भजन करना अत्यन्त प्रिय था। वह कहते थे कि ब्रह्म सबसे अलग भी है और सबसे मिला हुआ भी है। वह साकार भी है, निराकार भी है। उसकी ही शक्ति से पूरा जगत प्राणमय है। इसलिए ब्रह्म के चिंतन, स्मरण, भजन और मनन में ही परम सुख सन्निहित है।
संत रज्जब ने अपने पदों में निर्गुण-सगुण से परे निराकार चिन्मय परमात्मा की महिमा गाई। वह कहते थे कि मेरे परमात्मा तो मायारहित हैं, घट-घट में रहने वाले हैं, परम पवित्र हैं, पूर्ण ब्रह्म हैं, निर्गुण और सगुण होकर भी दोनों से परे हैं।
संत रज्जब ने कहा कि राम-रस पीते रहना ही सच्ची साधना का स्वरूप है।
राम रस पीजिए रे, पीए सब सुख होई।
पीवत ही पातक कहै, सब संतनि दिसिजोई॥
संत रज्जब ने कहा कि साधना को तब तक पूर्ण न समझिए, जब तक आप यह कहते रहें कि मैंने तत्व जान लिया है। जानना तो तब होता है, जब जानने वाला ज्ञान की सीमा पार कर जाए। उसे अपना कुछ न याद रहे। संत रज्जब ने कहा कि राम-नाम ही भवसागर से पार उतारने में समर्थ है। रज्जब अनुभवी संत और प्रेमी महात्मा थे।

Brij Ballabh Udaiwal
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1 comment:

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